स्वामीजी का जन्म 27-फ़रवरी-1824 को काठियावाड़ (गुजरात) के गाँव टंकारा में हुआ था | महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा समाज के उत्थान की दिशा में दिये गए महत्वपूर्ण योगदान कभी भी भुलाए नहीं जा सकते |
उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। गृह त्याग के बाद मथुरा में स्वामी विरजानन्द के शिष्य बने। १८६३ में शिक्षा प्राप्त कर गुरु की आज्ञा से धर्म-सुधार हेतु 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' फहराई। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ७ अप्रैल,१८७५ को मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की थी। सत्यार्थ प्रकाश जैसा उत्कृष्ट ग्रन्थ हिंदी तथा ऋग्वेदादिभाष्य संस्कृत मेँ लिखा। सन् १८८३ में स्वामी जी का देहान्त हो गया।
उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। गृह त्याग के बाद मथुरा में स्वामी विरजानन्द के शिष्य बने। १८६३ में शिक्षा प्राप्त कर गुरु की आज्ञा से धर्म-सुधार हेतु 'पाखण्ड खण्डिनी पताका' फहराई। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने ७ अप्रैल,१८७५ को मुम्बई में आर्य समाज की स्थापना की थी। सत्यार्थ प्रकाश जैसा उत्कृष्ट ग्रन्थ हिंदी तथा ऋग्वेदादिभाष्य संस्कृत मेँ लिखा। सन् १८८३ में स्वामी जी का देहान्त हो गया।
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