जो आधुनिक ग्रन्थों में 'श्रीगणेशाय नमः', 'सीतारामाभ्यां नमः', 'राधकृष्णाभ्यां नमः', 'श्रीगुरुचरणारविन्दाभ्यां नमः', 'हनुमते नमः','दुर्गायै नमः', 'वटुकाय नमः', 'भैरवाय नमः', 'शिवाय नमः', 'सरस्वत्यै नमः', 'नारायणाय नमः'
इत्यादि लेख देखने में आते हैं, इन को बुद्धिमान लोग
वेद और शास्त्राों से विरुद्ध होने से मिथ्या ही समझते हैं क्योंकि वेद और ऋषियों
के ग्रन्थों में कहीं ऐसा मंगलाचरण देखने में नहीं आता और आर्ष ग्रन्थों में 'ओ3म्'
तथा 'अथ' शब्द तो देखने में आता है देखो -
'अथ शब्दानुशासनम्' अथेत्ययं शब्दोध्किारार्थः प्रयुज्यते
-यह व्याकरणमहाभाष्य |
'अथातो धर्मंजिज्ञासा ' अथेत्यानन्तर्ये वेदाध्ययनानन्तरम्
-यह पूर्वमीमांसा |
'अथातो धर्मं व्याखयास्यामः| अथेति धर्मंकथनानन्तरं धर्मंलक्षणं
विशेषेण व्याखयास्यामः ।
-यह वैशेषिकदर्शन |
'अथ योगानुशासनम्' | अथेत्ययमध्किारार्थः
-यह योगशास्त्र
'अथ त्रिाविध्दुःखात्यन्तनिवृत्तिरत्यन्तपुरुषार्थः।' सांसारिकविषयभोगानन्तरं
त्रिाविध्दुःखात्यन्तनिवृत्त्यर्थः प्रयत्नः कर्त्तव्यः'
-यह सांखयशास्त्र
'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा'
-यह वेदान्तसूत्रा है
'ओमित्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत'
-यह छान्दोग्य उपनिषत् का वचन है
'ओमित्येतदक्षरमिदᆭ सर्वं तस्योपव्याखयानम्' |
-यह माण्डूक्य उपनिषत् के आरम्भ का वचन है
ऐसे ही अन्य ऋषि मुनियों के ग्रन्थों में 'ओ3म्' और 'अथ' शब्द लिखे
हैं, वैसे ही (अग्नि, इट्, अग्नि, ये त्रिाषप्ताः परियन्ति) ये शब्द चारों वेदों के
आदि में लिखे हैं| 'श्रीगणेशाय नमः' इत्यादि शब्द कहीं नहीं | और जो वैदिक
लोग वेद के आरम्भ में 'हरिः ओम्' लिखते और पढ़ते हैं, यह पौराणिक और
तान्त्रिाक लोगों की मिथ्या कल्पना से सीखे हैं, वेदादिशास्त्राों में 'हरि' शब्द आदि
में कहीं नहीं इसलिए 'ओ3म्' वा 'अथ' शब्द ही ग्रन्थ के आदि में लिखना
चाहिए|
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