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Tuesday, March 6, 2012

धर्मं क्या है ?

वैसे तो धर्म का क्षेत्र अति विस्तृत है, क्योंकि मनुष्य के जीवन का पथ आधार भूत ही धर्मं है |और धर्मं ही है उसका निरूपण एवं पथ प्रदर्शक | किन्तु फिर भी विद्वानों ने जो संक्षेप धर्म की परिभाषा की है वह इस प्रकार है -
यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः |
अर्थात जिन कर्मो के करने से इस लोक और परलोक दोनों की सिद्धि हो वही धर्मं है |
अब देखिये और विचार कीजिए की मनुष्य के जीवन के लिए कितनी सार्थक है यह धर्मं की परिभाषा | इसमें श्रेष्ठ कर्मो के करने पर विशेष बल दिया गया है | ऐसे कर्म और कर्त्तव्य जिनसे ईश्वर भक्ति में अटल विश्वास और प्राणी मात्र की सहज सेवा के लिए जाग्रति उत्पन्न होती है वही धर्मं है |

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  • As was said by Maharishi Swami Dayanand: "I have not come to preach a new dogma or religion, nor to establish a new religious order, nor to be proclaimed a new messiah or pontiff. I have only brought before the people, the light of Vedic Wisdom which has been hidden during the centuries of India's thraldom."
  • आर्य समाज संपूर्ण रूप से वैदिक ज्ञान पर आधारित है और वेदानुकूल वैदिक साहित्य और सत्य सनातन वैदिक धर्म को ही सर्वोपरि मानता है | हमारे पूर्वज समस्त ऋषि मुनि, योगी,तपस्वी ,विदुषी, मनीषी,महापुरुष राम ,कृष्ण ,आदि ये सभी भी आर्य थे और यहाँ तक की हमारे सम्पूर्ण इस देश का नाम भी आर्यवर्त था |
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